मेरा बचपन
विवेक कुमार तिवारी
मैंने देखा एक दिन सपना।
वापस पा गया, मैं बचपन अपना॥
झूलों पर झूलने की कर रहा तैयारी,
साथ में थी बन्दर सेना सारी।
जब झूले ने बच्चों का साथ पाया,
उसने हमको ख़ूब झुलाया॥
फिर खेलने पहुँचे क्रिकेट,
लेकर साथ में गेंद और बैट।
विपक्षियों ने फ़ील्डिंग सजाई,
फिर भी चौके-छक्के रोक ना पाई॥
फिर पहुँचे खेलने कंचे,
वहाँ मिले अनेक बच्चे।
बच्चों ने ख़ूब रंग जमाया,
कंचे खेलने में बहुत मज़ा आया॥
अब तो थी लट्टू की बारी,
खेलने की हुई पूरी तैयारी।
सबने लट्टू ख़ूब नचाया,
मुझको तो बहुत मज़ा आया॥
गए खेलने अब गिल्ली-डंडा,
लगा जहाँ था टीमों का झंडा।
देर तक गिल्ली को भगाया,
जीवन का सच्चा सुख पाया॥
फिर आई लुकाछिपी की बारी,
छुपने की हमने की तैयारी।
मैंने ख़ुद को ऐसे छिपाया,
कोई मुझको ढूँढ़ न पाया॥
फिर तो थी खाने की बारी,
तभी माँ ज़ोर से पुकारी।
उठ बेटा, कर श्रेष्ठ काज,
सबको होगा तुझ पर नाज़॥
सपने में बचपन के दिन याद आएँ।
काश! उसे हम फिर से पाएँ॥