चिड़िया
विवेक कुमार तिवारी
छत पर आई नन्ही चिड़िया
आकर मुँडेर पर बैठी है,
दिया श्रेष्ठ ने दाना-पानी
पता नहीं क्यों ऐंठी है।
बोला मैंने, रख दिया है दाना-पानी,
खा लो अब तुम चिड़िया रानी,
खाकर जल्दी-से कुछ बोलो,
अपना सुंदर मुख तो खोलो॥
छोटी चिड़िया थी संकोची,
बोली जैसे बोले कोई बच्ची।
काट दिए सब बाग़-बागवानी,
अब भाए कैसे दाना-पानी?
जब घर ही ना है मेरे पास,
फिर मैं क्यूँ ना रहूँ उदास।
करते रहते प्रकृति से छेड़ख़ानी,
कैसे लूँ अब दाना-पानी॥
मेरे घर को तोड़ दिए हो,
सबको बेघर छोड़ दिए हो।
भटक रहे सब खोकर छानी,
भाए मुझे क्यों दाना-पानी॥
समझ गई तुम्हारा इरादा,
दुःख देते हो सबसे ज़्यादा।
पिंजरे में डालना चाहते हो,
जीते जी मारना चाहते हो॥
समझ गया चिड़िया का दर्द,
मौसम था बाहर भी सर्द।
करी प्रतिज्ञा, पेड़ नए लगाऊँगा,
बेज़ुबानों ख़ातिर नए आश्रय बनाऊँगा॥