क़लम तुम्हें सच कहना होगा

01-11-2021

क़लम तुम्हें सच कहना होगा

हनुमान गोप (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

क़लम तुम्हें सच कहना होगा,
स्याही को आँसू बन बहना होगा।
मज़लूमों की दास्तां सुनानी होगी,
दर्द की दवा भी बतानी होगी।
 
शोषित हैं, उनकी आवाज़ बनो,
नए गीतों की तुम साज़ बनो।
ढाल बनो उनकी जो भूखे हैं,
दिन और रात जिनके रूखे हैं।
 
दुख में जो बहता वो ख़ून लिखो,
मजबूरी में जो, उनका जुनून लिखो ।
दो चुनौती अब तो मीनारों को,
शासन की मज़बूत दीवारों को।
 
लिखो किसान की वेदना को,
विधवाओं की संवेदना को।
भूखे बच्चों की भूख लिखो,
सदियों की तुम चूक लिखो।
  
वेश्यायों की कथा सुनाओ,
मजबूरों की व्यथा बताओ।
करो उजागर हत्यारों को,
सरकार के झूठे नारों को।
 
लोगों को दुख में जब रहना होगा,
ग़ुरबत में सब कुछ सहना होगा।
लाशों को जब गंगा में बहना होगा,
क़लम तुम्हें सच कहना होगा।

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