मैं इंसान हूँ!

15-10-2021

मैं इंसान हूँ!

हनुमान गोप (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

मैं इंसान हूँ,
ख़ुदा की पहचान हूँ,
फ़रिश्तों का अरमान हूँ।
मैं इंसान हूँ।
 
मैं जो चाहूँ कर सकता हूँ,
हर संकट को हर सकता हूँ।
अपनी पर जो आ जाऊँ मैं,
दरिया का रुख़ बदल सकता हूँ
 
मैंने समुद्र पर बांध बाँधा था,
पहाड़ों कंदराओं को लाँघा था।
जो उत्पाद बढ़ा हठधर्मियों का,
रण में मैंने सबको संहारा था।
 
मैं भगीरथ का वंशज हूँ,
गंगा धरा पर जो लाए थे।
मैं भरत का उत्तराधिकारी,
धर्म की ध्वजा जो लहराए थे।
 
मेरे पुरखों ने सदा,
वीरता का अध्याय लिखा,
हर मुश्किल को हँस कर पार किया,
वचन के लिए जीवन तक वार दिया।
 
मैं अँधियारे में चिराग़ बन जलता हूँ,
मोम बन मुल्क की ख़ातिर गलता हूँ।
मुझपर विधाता को भी अभिमान है,
मुझसे ही धरा पर उसका सम्मान है।
 
मैं सृष्टि में जीवन का मान हूँ,
ख़ुदा का प्रतीक औ परिधान हूँ।
मैं वसुधा की उत्तम संतान हूँ,
मैं इंसान हूँ।

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