मीठी वाणी बोलो
हनुमान गोपमीठी वाणी बोलो,
मुँह में अपने मिश्री घोलो।
देखो कोयल कैसे गा रही,
जीवन का राग सुना रही।
तुम भी कोयल बन जाओ,
धुन मधुर कोई तुम गावो।
सलीक़ा कहने का भी सीखो,
यहाँ वहाँ बेवज़ह मत चीख़ो।
मुस्कुरा कर सबसे मिला करो,
फूलों की तरह तुम खिला करो।
इतना तनाव देखो अच्छा नहीं,
मन मुटाव भी होता सच्चा नहीं।
ये खेल तो बहुत पुराना है,
सुख दुख तो बस बहना है।
सीमित सबके साँसों की डोर,
नाव को लगना इक दिन छोर।
फिर क्यों इतनी मारा मारी है,
भौंहे तनी और मुँह में गारी है।
क्यों क्रोध से आँखें हुई लाल हैं,
क्यों हर कोई बन जाता काल है।
जब सब छोड़ इक दिन जाना है,
क्षणिक यहाँ सब खोना पाना है।
आओ मिलकर हम सब यहाँ रहें,
दुख इक दूसरे का भी थोड़ा सहें।
जब भी मुँह खोलें प्रेम से बोलें,
कहने से पहले शब्दों को तोलें।
भावुकता का भाव रहे जीवन में,
अनुराग बसे सबके अंतर्मन में।
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