प्रेमी मत जा

15-10-2021

प्रेमी मत जा

भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’ (अंक: 191, अक्टूबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

आती शीत काल की 
प्रभात भँवरा गुंजन करता, 
पुष्प के मध्य से निकला, 
लेना चाहता एक वादा, 
अगली प्रभात का, 
 
पुष्प अकुलित-विचलित मत जा प्रेमी,
अगले क्षण का क्या पता, 
कब हो जाए हिमपात, 
कब हिमराज हवाओं में छुपा हुआ, 
आ जाए इस बगिया में, 
नष्ट हो मेरा जीवन, 
जीवन का जीवन रस जो, 
तू चाहता, पीना-पिलाना, 
मत जा प्रेमी।
 
इस साँझ व भोर के बीच फँस कर, 
छोड़ ना देना प्रेम का नियम, 
कैसे ले लूँ वादा कैसे दे दूँ वादा, 
अगले वर्ष मैं कहाँ?
मेरे बीज से उपजेगा कोई और, 
न होगा बिलकुल मेरे जैसा
कैसे दे दूँ वादा?
प्रेमी मत जा, मत जा।
 
क्यूँ डरता प्रभात से, 
क्यों डरता हिमपात से?
रह जा मेरे ही भीतर, 
साथ करेंगे ये जीवन अंत।
मत जा, मत जा प्रेमी मत जा॥

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