अपने आप में उगना
भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’
मैं अपने आप में उग रही हूँ
धीरे-धीरे ये ज्ञान हो रहा है
अपनी रुचि और अरुचि में
मैं धीरे धीरे उग रही हूँ
ये मेरा नया जीवन
कभी कभी मुझे उत्साहित करने लगा है
आकाश की गहराई अधिक
लगने लगी है,
जो मुझे और लघु बनाती जा रही है
कुछ उलझे हुए से रास्ते
अब विचारों के प्रकाश से
अधिक स्पष्ट नज़र आने लगे हैं
मैं अपने आप में उग रही हूँ
ये मेरा नया जनम है
मुझे इसकी बधाई है!