आत्मा का अभ्युदय
भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’
रे मन आत्मा का अभ्युदेय कर ले
शान्ति एवं संतोष से मित्रता कर ले
सम्बन्धों का रेखा गणित
अब तू समझ ले।
हल्का हो कर, ऊपर ऊपर तैरना सीख ले,
रे मन स्थिर हो कर चिन्तनशील हो जा
गम्भीर बन सागर बन जा,
व्यर्थ की शब्दावली का त्याग कर
आत्म चिन्तन और एकान्त से प्रेम कर ले।
उस रस को खोज जो, कहीं छूट गया था।
नरे रंगों को पहचान, आनन्द से भर,
कुछ सत्य नहीं, जो प्रत्यक्ष है, वही सत्य जान।
सूर्य से प्रकाश माँग, जल से पवित्रता,
वायुस एवैराग्य ग्रहण कर ले
रे, मन आत्मा का अभ्युदय कर ले!