नयन से जो बह रहा . . . 

15-08-2022

नयन से जो बह रहा . . . 

डॉ. प्रभाकर शुक्ल (अंक: 211, अगस्त द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

नयन से जो बह रहा वह हृदय का अवसाद है
कुछ कभी तुमने कहा था क्या तुम्हें वह याद है
 
ओ शिकारी, वो खिलाड़ी जाल तेरा है कहाँ
ये तपोवन आज भी तेरे लिए आबाद है
 
हम खड़े हैं अब तलक उस रास्ते के मोड़ पर
रोकना ना फिर किसी को बस यही फ़रियाद है
 
भूलना कितना सरल है वक़्त ने सिखला दिया
आयी लहरें तो घरौंदे रेत के बर्बाद हैं
 
टूट जाते हैं खिलौने बालपन के खेल में
आये थे जो छुट्टियों में कौन किसको याद है
 
ओ रचेता ओ प्रणेता आज तेरी धूम है
किन्तु तेरी हर कथा मेरी कथा के बाद है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें