मूक पत्थर की किताब
डॉ. प्रभाकर शुक्लमूक पत्थर की किताबों में बहुत कुछ दर्ज है!!
युद्ध के आग़ाज़ में जब बिगुल बजते थे यहाँ
दुश्मनों पर तोप से बारूद दगते थे यहाँ
इन क़िलों के सामने जो ख़ून के नाले बहे
वे कथानक अलिखित इतिहास ने जो ना कहे
उन शहादत का अभी भी शेष हम पर क़र्ज़ है!
पत्थरों की इन किताबों में बहुत कुछ दर्ज है!!:
रात की ख़ामोशियाँ सिमटी हुई वो सिसकियाँ
अनगिनत हैं क़ैद रूहें खंडहरों के दरमियाँ
आज भी एहसास होता ताप जौहर का यहाँ
ख़ून के सूखे निशां है कर रहे सब कुछ बयाँ
शौर्य की बलिदान की प्रेरक कथाएँ अर्ज़ हैं!
पत्थरों की इन किताबों में बहुत कुछ दर्ज है!!
घास की जो रोटियाँ खाकर कभी टूटे नहीं
पीठ पर शिशु बाँधकर भी खड्ग जो छूटे नहीं
शूरवीरों की कथाएँ रेत के कण कण कहे
आज भी है गूँजती वीरों के निश्छल क़हक़हे
इन धरोहर को बचाना अब हमारा फ़र्ज़ है!
पत्थरों के इन किताबों में बहुत कुछ दर्ज है!!