बिरहा के दिन

15-10-2022

बिरहा के दिन

डॉ. प्रभाकर शुक्ल (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

होंठों पर प्यास जनम की मधु गागर लेकर आना
सीने में दावानल है प्रिय सागर लेकर आना
 
यह धूप जेठ की म्हारे तन मन में आग लगाए
सावन भी सूखा बीता पर मीत नहीं तुम आए
सर से पाओं तक भींगू वह निर्झर लेकर आना! 
होंठों पर प्यास जनम की मधु गागर लेकर आना! 
 
ना मैं ज्ञानी ना पंडित जग क्या बोले ना जानूँ
मैं प्रेम पियासी मीरा तुमको मधुसूदन मानूँ
कुछ नहीं प्रेम में डूबे दो आखर लेकर आना
होंठों पर प्यार जनम की मधु गागर लेकर आना
 
ना सोना चाँदी माँगूँ ना हीरे पन्ने चाहूँ
ना महलों की अभिलाषा प्रीतम को मन्ने चाहूँ
 केवल अपनी बाँहों का तुम ज़ेवर लेकर आना! 
होंठों पर प्यास जनम की मधु गागर लेकर आना!! 
 
जब रात अँधेरी आए कोई पायल खनकाए
मैं पड़ी सेज पर सोचूँ मैंने क्या पाप ढहाये
 मेरे टूटे सपनों को तुम सादर लेकर आना! 
होंठों पर प्यास जनम की मधु गागर लेकर आना!! 
 
जीने की चाह बहुत है पर सौतन से डर लागे
बिरहा की लंबी रातें मन में शंका सौ जागे
जो ऐसी बात सही हो तो विषधर लेकर आना! 
होंठों पर प्यास जनम की मधु गागर लेकर आना!! 

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