नारी तेरे कितने रूप
डॉ. प्रभाकर शुक्लकभी मचलती सरिता,
कभी गूढ़ सी कविता!
कभी रौद्र की प्रतिमा,
कभी सीय सी वनिता!
कितने ही रूपों में
देखा मैंने तुमको,
कभी हाथ में मदिरा,
कभी अंक में ममता!
तू देवी की मूरत,
तू माँ की सूरत है!
केवल तेरी रहती
दाता की नीयत है!
तू प्यारी बहना है,
तू सुन्दर वामा है,
जैसी तेरी सूरत
वैसी ही सीरत है!
तुझमें शक्ति निहित है,
तू स्नेह सहित है!
हर सौंदर्य, कला, रस,
तुझसे ही वर्णित है!
तेरे बिना अधूरा
काल चक्र धरती का,
तेरी गरिमा, प्रभुता,
युग युग में अंकित है!
नयी सदी नवयुग में
अबला रही न नारी!
कर्त्तव्यओं की आशा
हक़ की भी अधिकारी
रथ के दो चक्रों में
समानता हो जैसे,
नारी बिना अधूरी
है जीवन की पारी!