चिराग़

अर्चना मिश्रा (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

दूर तक फैली नीरसता, 
गहन अंधकार, मायूसी 
वही दूर चमकता हुआ बल्ब 
अँधेरे के सीने को चीरता हुआ मुँह बाये खड़ा है
अँधेरा राह में कितना भी क्यूँ ना हो 
सूर्य को उदित होने से रोक नहीं सकता 
मन में रिक्तता, शून्यता और ख़ालीपन 
चाहे कितना भी व्याप्त हो जाए 
हर समय ये रह नहीं सकता, 
कुछ क्षण तो मुकम्मल हैं 
जहाँ ख़ुद से रूबरू होना ही है
 
पल पल उलझे से पल हैं 
जहाँ दो पल का ही पल है
फिर क्यूँ मन में हलचल है
कुछ तो पल-छिने से पल हैं
पलक झपकते ही उड़ जाने के पल हैं
फिर इस पल में क्यूँ नहीं हम हैं
पल-पल पल में ही रहना है
फिर क्यूँ हमें संग नहीं रहना है॥
 
मिलजुल कर एक नया संसार रचना है
अंधकार, वीभत्सता, डर, अकेलापन, अवसाद 
इनसे निकलना होगा, 
मैं को छोड़ सबको समझना होगा 
सिर्फ़ अस्तित्ववाद के साये में रहने से 
सिर्फ़ सन्नाटा ही हाथ लगेगा 
जनमानस, जनचेतना का हुँकारा भरना होगा॥
उठो जागो अब कुछ नया करना होगा 
जो सर्वजन सुखाय हो ऐसा कुछ प्रण
करना होगा॥

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