उलझे-सुलझे

15-10-2023

उलझे-सुलझे

भावना सक्सैना  (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

जीवन के रास्तों में जो लोग छूट जाते हैं, 
उनकी तस्वीरें रह जाती हैं किताबों में
बरसों बाद अचानक कोई पन्ना पलटते ही
सरक कर आ पसरती है सामने
और कहती हैं कि तस्वीरें
सिर्फ़ किताबों में नहीं
अंकित हैं हृदय पर। 
धुँधली तस्वीरें होती हैं इबारतें
अनकही मोहब्बतों की
वो मोहब्बत जो दिल में दफ़्न हो
मिलते ही अवसर कोई
बदस्तूर बहाती हैं आँसू
 
रात भर की ओस से भीगी सुबहें ताज़ी हो जाती हैं, 
लेकिन रात भर ओस में नहाकर झरे हरसिंगार बासी। 
बासी फूल कितना भी महकें
पूजा में अर्पण नहीं होते
ठीक वैसे ही जैसे कोई भी आँसू
धो नहीं पाते रिश्तों पर जमी काई
 
कलावा खोजती उँगलियों में उलझ जाते हैं 
अलमारी, सन्दूकों के कोनों में छिपे धागे
नई पोशाकों पर जड़ देते हैं कुछ सिलवटें और रंग कुछ पुराने
सुलझाना चाहो जितना उलझते ही जाते हैं सिरे
कुछ आता समझ 
लेकिन समझे से ज़्यादा, 
रह जाता है समझ से परे
कि होने तो नहीं थे ऐसे 
जैसे समीकरण जीवन में हुए
यूँ समझने को बस इतना ही तो
कि जाने कितने जन्मों का भोगते हैं इस जन्म 
और इसमें फिर जोड़ लेते हैं आगे के जन्मों में भोगने के लिए . . . 

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