समझदारी
भुवनेश्वरी पाण्डे ‘भानुजा’अचानक बादल हटा के,
जो धूप छम से निकल आई,
मैं गुलाबी रंग में रँग गई।
बाहर तितली को जो मँडराते देखा,
तो मेरे पैरों में बिजली की पायलें बँध गईं,
हवा के झोंके ने जैसे याद दिला दी हो,
कोई भूली बात –
चेहरा मुस्कुराहटों से भर उठा।
चिड़ियों की बहसा-बहसी जो सुनी तो,
मायके का आँगन याद आ गया,
उस दिन किसी ने यूँ भली-सी बात कह दी कि –
अपने को निहारने दर्पण के आगे चली गई।
कभी-कभी लगता है कि गुलाबी से लाल,
लाल से नारंगी रंग प्रकट हो रहा है,
या बचपन से जवानी,
जवानी से समझदारी निकल रही है॥