सोचा न था
वैदेही कुमारीकभी सोचा न था
होगा कभी ऐसा
बंद होगे हम घरों में
सड़कों पे यूँ पसरा सन्नाटा होगा
मजबूरियाँ आएगी इस क़दर
दूर होगी माँ की ममता
यूँ अकेले हो जाएँगे हम
छोड़ जाएगा साया अपना
हँसते खिलखिलाते चेहरे
बन जाएँगे सपने
चारों ओर है बस अँधेरा
अवसाद ने डाला डेरा।