सकारात्मकता का बोध कराती लघुकथाओं का संग्रह है ’माटी कहे कुम्हार से...’

01-09-2019

सकारात्मकता का बोध कराती लघुकथाओं का संग्रह है ’माटी कहे कुम्हार से...’

दीपक गिरकर

पुस्तक : माटी कहे कुम्हार से... 
लेखिका : डॉ. चंद्रा सायता 
प्रकाशक : अपना प्रकाशन, 
म. नं. 21, सी-सेक्टर, हाई टेंशन लाइन के पास, सुभाष कालोनी, 
गोविंदपुरा, भोपाल – 462 023
मूल्य : 200 रुपए
पेज : 103

हिन्दी एवं सिन्धी भाषा की सुप्रसिद्ध रचनाकार डॉ. चंद्रा सायता के लेखन का सफ़र बहुत लंबा है। माटी कहे कुम्हार से...  लेखिका का दूसरा लघुकथा संग्रह है। लेखिका का पहला लघुकथा संग्रह गिरहे भी काफ़ी चर्चित रहा था। लेखिका के तीन काव्य संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। चंद्रा सायता की लघुकथाओं की पृष्ठभूमि और कथानक जीवन की मुख्यधारा से उपजते हैं और उनके पात्र समाज के हर वर्ग से उठ कर सामने आते हैं। इस पुस्तक में कुल 72 लघुकथाएँ संकलित है। इस संग्रह की अधिकांश लघुकथाएँ सशक्त है। लघुकथाओं की घटनाएँ और पात्र काल्पनिक नहीं, जीवंत लगते हैं। इस लघुकथा संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने लिखी है।  

माटी कहे कुम्हार से सकारात्मकता का बीज रोपित करती इस संग्रह की प्रमुख लघुकथा है। लघुकथा भिखारी सेठ में लेखिका कहती है,  "दद्दा! थोड़ा सा तो रहम करो मुझ पर। आपके बेटे जैसा हूँ। जरूरत आ पड़ी है, वरना…  वो तो ठीक है। मैं बिजनेस में कोई समझौता नहीं करता। यही एक कमी है मुझमें। बूढ़ा भिखारी टस से मस नहीं हुआ।” बासमती रिश्ते लघुकथा भी सकारात्मकता का बोध कराती रचना है। इस लघुकथा में एक जगह यह वर्णन दृष्टव्य है - "आप समझ सकती हैं कि अपने जवान बच्चों के सामने हम अगर निकाह कर लें तो उनके दिलों पर तो नश्तर चल जाएँगे। कहते हुए अशफाक ने जमीला की ओर से मसले का हल जानना चाहा। जी, आप दुरूस्त फरमा रहे हैं। इस मसले पर तो मैं पहले से सोचे बैठी हूँ। वह क्या? अशफाक अचानक ख़ुशी छुपाते हुए बोला। जमीला ने मुस्कुराते हुए कहा - हम पहले बच्चों से मशविरा कर लें, क्या वे एक दूसरे को पसंद करते हैं। वे साथ-साथ रहना चाहते हैं। ” लेखिका ने स्वार्थी दुनिया के मुखौटे का चित्रण ग़रीब लघुकथा में सटीक ढंग से किया है। वीराने में बहार और काशी जैसी सशक्त लघुकथाएँ मानवीय संवेदनाओं को झंकृत कर के रख देती है। भाभियाँ लघुकथा भाभियों के दोहरे चेहरों को बेनक़ाब करती है। उद्यान सौंदर्यीकरण, सच्चाई छुपाती तस्वीर, अधिकार, ऊँची दूकान, नास्तिक जैसी लघुकथाएँ समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करती हैं। लेखिका ने अकेलापन, अर्थी और अर्थ, अंकुरण इत्यादि लघुकथाओं में बच्चों के मनोविज्ञान को बहुत ही स्वाभाविक रूप से उकेरा है। लेखिका ने कुछ लघुकथाएँ जैसे ज़िन्दगी और समय, अकेलापन, तलाक। तलाक। तलाक।, माटी कहे कुम्हार से, वक़्त बादशाह, असली दोषी, वर्चस्व की लड़ाई इत्यादि सांकेतिक, मानवेतर पात्रों के माध्यम से व्यक्त की हैं। सामाजिक विसंगतियाँ, पुरुष के अहं, सोशल मीडिया, बाल मनोविज्ञान, मातृत्व भाव, बाज़ारवादी दृष्टिकोण, दोहरे चरित्र, नारी सुरक्षा, नैतिक और चारित्रिक कमज़ोरी इन सब विषयों पर लेखिका ने अपनी क़लम चलाई है।

इस संग्रह की रचनाएँ समाज को सीख देती हैं और साथ में समाज में व्याप्त विसंगतियों को देखने की एक नयी दृष्टि देती हैं। चन्द्रा सायता के लेखन में गंभीरता, सूक्ष्मता और यथार्थपरकता दृष्टिगोचर होती है। लेखिका की रचनाएँ जीवन की सच्चाइयों से साक्षात्कार कराती है। चन्द्रा सायता की लघुकथाएँ पाठकों को सोचने को मजबूर करती हैं, ज़िम्मेदारी का अहसास करवाती हैं। रचनाओं की भाषा सहज, स्वाभाविक और सम्प्रेषणीय है। संवेदना और भावना के स्तर पर चंद्रा सायता जी की लघुकथाएँ हमको उद्वेलित करती हैं। 103 पृष्ठ का यह लघुकथा संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। डॉ. चंद्रा सायता का यह लघुकथा संग्रह सराहनीय और पठनीय है। आशा है प्रबुद्ध पाठकों में इस लघुकथा संग्रह का स्वागत होगा।

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