जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे

15-09-2021

जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे

हनुमान गोप (अंक: 189, सितम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे
जो साथ रहे वो दोस्त भी सच्चे थे!
 
न पैसों का फ़िक्र, न समय का ख़्याल था
न भविष्य का ज़िक्र, न बातों का मलाल था!
 
जब जैसा होता वैसा कह देते थे
मतभेदों को भी हँस कर सह लेते थे!
 
कभी मज़ाक बन जाते, कभी बना भी देते थे
रोते रोते इक दूजे को हँसा भी देते थे!
 
बचपन का वो भोलापन, लड़कपन से जवानी
कॉलेज की वो मोहब्बत और आँखों में पानी!
 
सपनों की वो दौड़, उम्मीदों की रवानी
हर दिन गढ़ते थे कोई नई कहानी!
 
मोबाइल का दौर नहीं चिट्ठियों का काल था
दूरियाँ थीं बहुत, दिलों मे सबका ख़्याल था!
 
मज़हबी ताना बाना भी क्या ख़ूब था
आपसी रिश्तों का ऐसा गठजोड़ था!
 
न हिंदू थे न मुसलमान थे
आँखों में एक दूसरे की बस इंसान थे!
 
जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे
जो साथ रहे वो दोस्त भी सच्चे थे!

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