बलात्कार

16-01-2009

कल उसे अणिमा सुबह शादी में जाना था उसकी सहेली नीलम अपने ३ साल से चल रहे मित्र मधुर से शादी कर रही है। माता-पिता की पुरानी मित्रता है इसीलिए नीलम भी उसे जानती थी। अणिमा ने अपने पति को पहले ही बता दिया था, कि कल सुबह की शादी है समय पर पहुँचना चाहिए किन्तु जैसा कि शायद सभी घरों में होता होगा, घर से निकलने में अणिमा व भास्कर को देर हो गई थी। अणिमा, कोई निमंत्रण होता है तो क्या मजाल है वो देर होने दे। पर जब अणिमा की ओर से कहीं जाना हो तो जानकर हँसी मजाक में देर कर देता है भास्कर। सज सँवर कर दोनों गाड़ी में बैठ गये, पहले से लगा हुआ कैसेट “हम आप के हैं कौन” का टाइटिल सांग बजने लगा। बातचीत नहीं हो रही बस गीत के बोल ही पूछ रहे है, हम आपके हैं कौन? शादी के लिए ओकविल की तरफ के बैंक्यूएट हाल तक जाना था, ज्याद वक्त नहीं लगा। शादी बड़े अच्छे ढंग से पुरोहित जी ने करवाई। जब वचन लिए गये सबने सुने पंडित जी ने कहा कन्या के पिता से कहो उन्होंने कहा मैंने अपनी पुत्री को आँखो की पुतली के सामन पाला है क्या तुम ये आश्वासन देते हो मेरी पुत्री का जीवन भर ख्याल रखोगे, दूल्हे ने झट से हाँ कर दी, सब उपस्थित दृष्टागण हँस पड़े, बड़ा हँसी खुशी का माहौल बन गया किन्तु अणिमा की आँखों से गंगा जमुना बह निकली। क्या २ साल पहले भास्कर ने भी यूँ ही हँसी में बिना समझे शपथ ले ली थी जो मेरे सुख का, मेरी खुशी का उसे अब कुछ ध्यान ही नहीं।

 आँसू आँखों से जो बहने लगे तो जानो एक दम से बाँध ही टूट पड़ा। उसे सबके बीच से उठ कर रैस्ट रूम की तरफ जाना पड़ा वो रुक ना पाई, गला ऐसा रुँध गया कि गले से पेट तक तेज़ गुबार सा उठा और वो कमज़ोर हो कर फफक पड़ी। दर्पण में चेहरा देख कर तो और भी रोना आ गया। भास्कर ने अग्नि के सामने जो शपथ ली थी सब झूठी निकली। उसको अभी देर से आने का गुस्सा याद ना रहा, याद आ गया जब वह कुछ घर में करना चाहती थी और भास्कर ने ना करते हुए डाँट भी दिया था कि क्यों फिजूल में पैसे खर्च करना चाहती हो, उतना ही करो जितने की ज़रूरत हो। वो खुद कमाती है, पैसों की क्या बात है? पर हर बात में ज़रूरत को लाकर खड़ा कर देना कहाँ तक ठीक है? उसका भी मन करता है कुछ यूँ ही मिलने जुलने का,लोगों को बुलाकर खिलाने-पिलाने का, पर नहीं वो अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकती। सामाजिक दिखावे की चादर के नीचे पड़े रह कर कहना पड़ता है कि “सलाह नहीं बनी”। उसे अच्छा नहीं लगता, बेवजह झूठ बोलना। जब कि उसे इजाज़त नहीं मिली इसलिए वो नहीं कर रही। सलाह नहीं, उसे लगता है तानाशाही है भास्कर की। फिर रात को जब भास्कर उसके ऊपर अपनी इच्छाओं को लाद कर अपना सुख खोजता है, पाता है वो कुछ शामिल नहीं, पर वक्त कट जाता है वो सोच लेती है यही नियती है। और भास्कर के उतेजनात्मक क्षणों के समाप्त होने तक उसके साथ नहीं होती है मन में तूफान है कि ये पति-पत्नी का सम्बन्ध नहीं बलात्कार ही है वरना इस क्रम में दोनों का शामिल होना ज़रूरी है। इस बलात्कार को वो किससे व्यक्त करें कहाँ जाए। शहर में ही माता-पिता है, शहर में ही भाई बहन है। शहर में ही सास ससुर है। शहर में ही मन्दिर व पूजास्थल भी है। और वो पति के घर में सुरक्षित होगी, ऐसा सभी का मानना है फिर भी उसका बलात्कार हो गया किससे कहें?

उसने ठंडे पानी के छींटे चेहरे पर डालने शुरू कर दिए, उसने सोचा तपते चेहरे का बेहद ठंडे पानी से वो ठंडा कर देगी। कुछ देर पानी से खेलते रहने के बाद चेतना लौटी उसने टैप बन्द कर दिया। मुहँ पोंछा और पर्स से सौन्दर्य प्रसाधन की चीजें निकाल कर मुखड़ा सुधार लिया बाल सँवारे कुछ सुगन्धित हो ली और बाहर निकल आई। बाहर निकली तो देखा माँ आ रही थी। कुछ गला भरने लगा, तो फिर सम्हाला, बनावटी हँसी लाकर माँ से कुछ यूँ ही मंडप सा सुन्दर सजा है;दूल्हे की शेरवानी कितनी सज रही है बातें की, आगे बढ़ गई। क्या यही सच्चाई है जीवन की विवाह उसका भी इसी तरह सब मंगल आर्शीवादों के बीच हुआ था सप्तपदी में दूसरा पग धरते हुए बोला भी था मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिक संबल के लिए हम कदम धर रहे हैं। फिर क्यूँ भूल गये भास्कर की तुम जब मेरी इच्छा के बिना अक्सर अपनी हो केवल अपनी इच्छा की पूर्ती सेज पर कर लेते हो मैं किसे कहूँ। बदला कैसे लूँ, तुमसे तुम्हारे स्वार्थी व्यवहार से। हम मान लेते है कि मन में किसी के क्या है पता करना कठिन है किन्तु मन के साथ तन ना जुड़ रहा हो तब तो तुम्हें पता चलता ही होगा कि मैं तुम्हारे साथ नहीं। सुबह फिर वही नज़रों का चुराना एक दूसरे को सीधे-सीधे बात ना करके दूसरों पर डाल कर सम्बोधित करना। अति सामान्य सा व्यवहार प्रस्तुत करना, पर कौन पढ़ेगा मेरे मन का द्वन्द्व?यही द्वंद्व लिए गए वचनों व सप्तपदी को भुलाने पर मजबूर करने लगता है। इतनी बातों में से कुछ तो गम्भीरता से निभाओ। कोई खेल नहीं, भास्कर की इन लाचारियों को माफ़ करते चले जाना। वे खोजने लगी है नई राह।

१० बजे अच्छे से तैयार हुई और बाहर निकल गई। आज पैसे खर्च करेगी जितना मन होगा खरीदेगी। अकेले ही सही अच्छी जगह जा कर खाना खाएगी उसके पास कार्ड है। मन आक्रोश में था उसको ज़रूरत नहीं थी फिर भी कुछ महँगे सूट खरीद डाले। खाना खाया कुछ बँधवा भी लिया फिर सुनार के यहाँ जा कर एक कंगन वो कई बार भास्कर के साथ जा कर देख आई थी लेकिन खरीदा नहीं था (ज़रूरत नहीं थी) खरीद लिया। उसी समय पहन कर दिल को प्रसन्न किया। गाड़ी में बैठी और जगजीत की ग़ज़लें चला ली “आदमी-आदमी को क्या देगा” पूरे रास्ते मन को समझाती रही अब जब-जब भास्कर ये करेगा, जवाब में मैं पैसा फूँक दूँगी।

कुछ दिन बीते भास्कर के बहुत छोटेपन के मित्र अपनी पत्नी के साथ यहाँ उनके पास घूमने आए। अनके विवाह को भी ४ साल ही हुए थे अभी परिवार बढ़ाने से पहले दुनियाँ घूम लेने का चलन जो चल पड़ा हैं मानव व मानसी, पढ़े लिखे काम पर अच्छे से लगे हुए थे। दोनों ने काम पर मित्रता की फिर विवाह। मित्रता के दौर में कभी उलझना नहीं हुआ ऊपर से लगता दोनों का सफल विवाह है परन्तु अणिमा उस दिन चकित रह गई जब वे देर रात तक बातें करते करते इस बात पर अचानक आ गये कि पूजा करनी चाहिए। दोनों के विचार पूर्ण रूप से भिन्न। मानव नहीं चाहता मानसी पूजा करके समय खराब करें वो जाने किस सोच के तहत कहता है मानसी तुम उतना वक्त अपनी अगली पढ़ाई में लगाओगी तो जल्दी तुम्हारी पदोउन्नती हो जाएगी ये भगवान ने क्या करना है यहाँ मानसी मन में सोचती ईश्वर के लिए ऐसे कहना नहीं चाहिए ये तो पूरी नास्तिकता है। अज्ञानता है पाप है। पर मानव हँसता है उसकी सोच पर। मानसी को डर है सन्तान में भी ये अविश्वास ना स्थनानतरित हो जाए। यदि उसे जरा सा भी भान होता तो वो शायद विवाह ना करती। अब तो उसे परिवार बढ़ाने के विचार से भी भय है। शुरू-शुरू में तो ये बातें बड़ी हो कर सामने आई नहीं, पर अब जबकि ४ साल होने लगे और परिवार वालों का दबाव पड़ने लगा बच्चों के लिए, तो मानसी इस पूजा पाठ की ओर ज्यादा बढ़ने लगी, कंजके खिलाना,जागरण में जाना व्रत आदि करना। उसने अणिमा से कह ही दिया कि रातें तो कई बार रो कर ही काट लेती हूँ क्योंकि जब साथ नहीं (पूर्ण सहयोग) तो क्या रह गया है इस विवाह में मात्र छलावा है। दिन की रौशनी में हम दूसरों की देखा देखी एक सम्झौते की, प्रसन्नता की चादरें ओढ़े फिरते हैं पर क्या केवल शरीर की माँग ही महत्व की है? जीवन साथी का आध्यात्मिकता में भी तो कुछ साथ पाना हमारा विशेष अधिकार नहीं। मेरा मन हाहाकार कर उठता है जब मैं सोचती हूँ कि मानव मेरे साथ नहीं। कहाँ तक ये गाड़ी अकेले खींच पाऊँगी मैं। मानसी बहुत उदास हो गई दूर नज़रें जैसे कुछ खोजने लगी थी। वो उठी और कुछ चाय कॉफ़ी का प्रबन्ध किया और अपने कमरों की ओर कदम बढ़ चले।

कई सालों बाद वक्त अपनी गति से चलता रहा और अणिमा के एक कन्या हुई। अब अणिमा का जीवन बस कोमल पर ही केन्द्रित है उसे वो एक अच्छी जीवन देने में व्यस्त है इधर मानसी को एक देव कृपा से पुत्र है। वो उसे चाहती है कि मानव जैसा नास्तिक ना बन जाए। कुछ तो गुण मानसी जैसे हों यही प्रयास है। परन्तु उनके मन आकाश में कहीं जो जीवन साथी की कल्पना थी वो दरक गई है और वे दोनों अपने साथ हुए बलात्कार को भुला कर जी रहीं हैं। आज भी उनका मन इस बात से समझौता नहीं कर पाता लेकिन ये जीवन इतना बड़ा है कि बहुत सी ऐसी घटनाएँ आँचल में लिए अपनी मंथर गति से बहता जाता है। कुछ पीड़ा है कुछ सुखी है इसी से गति है, प्रवाह है। वे फिर भी सोचने पर मजबूर है कि क्यो पुरुष नहीं जान लेता स्त्रियों के मन की इच्छा। देखने की बात छोडो स्त्री गुणवान सम्वेदनशील पुरुष चाहती है। जो पग-पग पर उसका सम्बन्ध बने शरीर से, मन से व आगे चल कर उसका व साथी का साथ हो धार्मिक व आध्यात्मिक पथ पर।

संध्या हो चली थी शीतल पवन ने धीरे से गुज़रते हुए कहा चलो वहाँ जहाँ मैं जा रही हूँ वहाँ कोई बंधता नहीं और मैं (पवन) आदतन खुद अपने में बाँधती नहीं चलती चलो जैसे पवन चले।

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