ज़िन्दगी का हिसाब दे दें क्या
डॉ. विकास सोलंकी
212 212 1222
ज़िन्दगी का हिसाब दे दें क्या
आज उनको किताब दे दें क्या
राह में जो बिछा दिए काँटे
हाथ उनके गुलाब दे दें क्या
हो रही आज बस्तियाँ सूनी
उनकी आँखों में ख़्वाब दे दें क्या
रोशनी माँगता नहीं है वो
बोलिए तो जनाब दे दें क्या
जुगनुओं के भरोसे जीते जो
अब उन्हें आफ़ताब दे दें क्या
मौन रहना उचित नहीं है अब
सोचता हूँ जवाब दे दें क्या