बहुत छोटी कहानी है
डॉ. विकास सोलंकी
1222 1222
बहुत छोटी कहानी है
मगर यह तरजुमानी है
कथानक पढ़ लिया हमने
कथा यह भी पुरानी है
ज़रा सा देख लो आकर
नई यह ज़िन्दगानी है
हृदय में बह रही कोशी
नयन गंगा का पानी है
नहीं मैं तोड़ सकता हूँ
ये रिश्ता ख़ानदानी है
धरा पर पाँव है मेरा
नज़र यह आसमानी है
पढ़ी है मैंने रामायण
सही तब बात छानी है
दिया है ज्ञान मण्डन ने
समझ मेरी पुरानी है
यहाँ जो व्यास को समझा
वही तो ब्रह्मज्ञानी है
जहाँ रहते हो सोलंकी
वही क्या अगुआनी है