सत्य सब आज दिखने लगा है
डॉ. विकास सोलंकी
212 212 2122
सत्य सब आज दिखने लगा है
झूठ पैसों पे बिकने लगा है
दूध पानी में ऐसा मिलाया
हंस भी आज झखने लगा है
हाल ऐसा हुआ है चमन का
पेड़ मुर्झा के गिरने लगा है
बिजलियाँ गिर रही हैं शहर में
गाँव का मन सिहरने लगा है
है हवाओं में फैला ज़हर यूँ
दम यहाँ अब तो घुटने लगा है
हौसले से निकल अब सफ़र में
देख सूरज निकलने लगा है