यात्रा

सूरज दास (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

यात्रा चल रही है 
सदियों से चल रही हैं 
यूँ कहें कि 
चलती आ रही है 
चलती जा रही है 
यह वह यात्रा है 
जिसे समाप्त करना
ख़ुद को समाप्त करने जैसा है 
अब कौन ख़ुद को 
समाप्त करना चाहेगा 
जीवन की यात्रा 
समाप्त होती है 
फिर भी ये यात्रा
समाप्त नहीं होती
आज हममें और तुममें है 
कल हम जैसा 
किसी और में होगा
हमें समाप्त कर 
ये हर किसी में होता रहेगा
लेकिन ये समाप्त नहीं होगा 
इसे समाप्त करना अपितु 
संसार के नियमों को समाप्त करना है। 

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