मेरी शैली
सूरज दासआज मन चाहा कि तुम
पर एक कविता लिखूँ।
पर पता है तुम्हें, तुम तो
स्वयं में एक कविता हो।
जिसे पढ़ने और समझने
के लिए शब्दों कि नहीं,
हृदय की ज़रूरत है।
और मैं तुम्हें लिख सकूँ
इसमें मेरी नहीं, मेरी
शैली की ज़रूरत है।