नदी की लहरें
सूरज दासनदी जब बहती है
अपनी धुन में, मैं
महसूस करता हूँ
उसे अपने मौन में।
शायद कहना कुछ
चाहती है मुझसे,
कि ए पागल क्यूँ घूमता
है तू मेरे इस आँगन में।
मैं हमेशा कि तरह
यही कहता हूँ,
मुझे अति प्रिय है घूमना तेरे
इस किनारों के आँगन में।