वो लम्हा (राजेंद्र कुमार शास्त्री ’गुरु’)

15-08-2020

वो लम्हा (राजेंद्र कुमार शास्त्री ’गुरु’)

राजेंद्र कुमार शास्त्री 'गुरु’ (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

लग रहा है मुझे वो लम्हा अब आने वाला है
जिससे है पाक मोहब्बत वो दूर जाने वाला है।


गूँजता था जिसके ठहाकों से मेरा आशियाना,
शायद अब वो आँगन ख़ामोश होने वाला है।


मरहम लगाती थी उसकी मुस्कुराहटें घाव पर
घाव वो अब मेरा वापस हरा हो जाने वाला है।


फूल खिले रहते थे आँगन वाले उस पौधे के
उसके चले जाने से अब वो मुरझाने वाला है।


जो अपने साथ लाई थी उजाला ज़िन्दगी में
महसूस कर रहा हूँ, अब अँधेरा छाने वाला है।

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