आजकल मैं खिड़की नहीं खोलता 

15-02-2022

आजकल मैं खिड़की नहीं खोलता 

राजेंद्र कुमार शास्त्री 'गुरु’ (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आजकल मैं खिड़की नहीं खोलता
 
धुंध सी छाई रहती है मेरी कोठरी के बाहर, 
ज़िन्दगी बाहर है या नहीं इसका पता नहीं 
ढूँढ़ता हूँ उम्मीद रूपी सूर्य की किरण रोज़, 
कभी रश्मि झाँकेगी इसका मुझे पता नहीं॥
 
जब उठकर खोलता हूँ कोठरी की खिड़की 
बचपन भूखा, प्यासा और नग्न सा दिखता है 
तलाश रहती है इन्हें कुछ रुपयों की कचरे में, 
पर सिक्कों की जगह कचरे का थैला मिलता है। 
 
कभी स्कूल के बैग मिलेंगे मुझे इनके कंधों पर
इस आस में मैं कोठरी की खिड़की खोलता हूँ 
पर मिलता है वही पहचाना सा कचरे का थैला
इस लिए आजकल मैं खिड़की नहीं खोलता हूँ। 

1 टिप्पणियाँ

  • 22 Dec, 2022 06:45 PM

    bahut hi shaandaar

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