तेरे नाम की नज़्म
राजेंद्र कुमार शास्त्री 'गुरु’बड़े दिनों के बाद,
आज बरसात की रात आई है,
वो भूली बिसरी तेरी,
मुस्कराहट मुझे याद आई है।
जब बदलता था करवट,
तो पहले तू होती थी,
आज तलाश की तो,
मिली फ़क़त तेरी परछाई है
उठकर देखा मैंने,
अपना चेहरा जब आरसी में
बस कुछ ख़ास नहीं दिखा,
तन्हाई नज़र आई है
सुनाई देती थी जहाँ,
खनक तेरी हँसी की मुझे
खोलकर दरवाज़ा देखा तो,
ख़ामोशी ही छाई है
कभी लिखी थी जो,
मैंने नज़्म तेरे नाम की
दिल पर पत्थर रखकर,
'वो' आज मैंने जलाई है