विद्रोह
मोतीलाल दासएक लय थी
एक सुर
और राग भी
तेरे हर लम्हे में
जब तुम्हें
ठूँस दिया गया
चूल्हे की आँच में
और बिछवान की सलवटों में
न जाने कैसे
वो राग
वो लय
और वह सुर
बिला गया
तेरे हर लम्हे से
शायद सभी कुछ
नहीं बदलता
यदि तुम सीख पाती
चीखने की कला।