कर्त्तव्य और अधिकार से परे की शक्ति ‘मैं भी सैनिक’

01-12-2023

कर्त्तव्य और अधिकार से परे की शक्ति ‘मैं भी सैनिक’

मोतीलाल दास (अंक: 242, दिसंबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

पुस्तक का नाम: मैं भी सैनिक (लघुकथा संकलन) 
संपादन: लता तेजेश्वर रेणुका
प्रकाशक: ज्ञानमुद्रा पब्लिकेशन, भोपाल
पृष्ठ संख्या: 97
प्रकाशन वर्ष: 2023
मूल्य: ₹160/-

इधर एक साझा लघुकथा संग्रह की पुस्तक ‘मैं भी सैनिक’ हाथ लगी। इस लघुकथा संग्रह में 25 रचनाकारों के 29 लघुकथाएँ हैं जिनका संपादन श्रीमती लता तेजेश्वर ‘रेणुका’ जी ने किया है। जैसा कि पुस्तक का नाम है उस अर्थ में पाठकों के मन में यह ख़्याल बरबस पनप लेगा कि इस पुस्तक में हमारे वीर सैनिकों के पराक्रम की गाथा से ओतप्रोत देशभक्ति की बयार बहती होगी। यह बात सच भी है, इस पुस्तक में उन वीर सैनिकों के पराक्रम की गाथा तो है ही साथ ही साथ उन भारतीयों का भी पराक्रम की गाथा भी है जो सैनिक तो नहीं किन्तु इनका साहस, कार्य और वीरता देशभक्ति की मिसाल बनकर एक सैनिक की भाँति हमारे सामने आ उपस्थित होती है और हम इन्हें जय हिंद की सलामी दिए बिना चूकते नहीं हैं। 

एक विषय को लेकर बुनी गई रचनाओं पर अक़्सर पाठकों को यह भ्रम हो सकता है कि इसमें एकरसता होगी और पढ़ने पर एक ही जैसी स्थिति से गुज़रना हो सकता है। लेकिन इस पुस्तक में आई हुई रचनाएँ न सिर्फ़ उन भ्रमों को तोड़ता है बल्कि कई नए आयाम को रचता जाता है। यह पुस्तक शोधार्थियों के लिए बड़े काम की है। एक ही विषय को लेकर, विभिन्न रचनाकारों द्वारा रची गई विभिन्न रचनाएँ एक ही पुस्तक में मिल जाती हैं जो इन्हीं के अंतर्गत आई हुई कथाओं के बीच विचारों और चेतनाओं के विभिन्न रूप मिल जाते हैं। इस मायने में इस पुस्तक का स्वागत साहित्य जगत में होना ही चाहिए। 

लघुकथा महज़ किसी कथा का अंश नहीं होता बल्कि लघुकथा दो वाक्य की हो सकती है तो दो सौ वाक्यों की भी। हाँ, लघुकथा में कथा होती है उन पृष्ठभूमियों की जिनमें हमारा जीवन गूँथा हुआ होता है। इन गाथाओं को परोसने में तथा पढ़ने पर, यदि पाठकों के मन के भीतर एक कौंध पैदा कर दे, एक आसमान में गरजती बिजली के मानिंद विचारों को भीतर तक झिंझोड़ कर रख दे और एक सपने को जन्म देने या मिटा देने की क़ुव्वत हासिल कर ले तो यह लघुकथा का महत्त्वपूर्ण प्रस्थान बिंदु होगा। यह पुस्तक इन सभी आयामों में बिल्कुल खरी उतरती है। यहाँ देश की सीमा की मिट्टी, समाज के विकास की शक्ति, जीवन मूल्यों की बानगी, समस्याओं से पार पाने की रवानगी, मनुष्यता को बहाल करने की ज़िद आदि अनेकों पृष्ठभूमि से आई हुई रचनाएँ जहाँ हमें आश्वस्त करती हैं वहीं विचारों के धरातल पर नई दिशा का द्वार खोलती हुई चिंता और चेतना से में लबरेज़ कर जाती हैं। इन सभी आयामों में यह पुस्तक में सुकून देती है और भविष्य के नए दरवाज़े खोलती है। 

इस पुस्तक में मंजु शर्मा जांगिड की ‘शहीद’, गिरिमा हार्दिक घारेखान की ‘लड़ाई’, नीना छिब्बर की ‘मास्की सेना’, वेंकट लक्ष्मी गायत्री की ‘निःशब्द कथा चित्र’, शिल्पा सोनटक्के की ‘बाल विवाह’, मोतीलाल दास की ‘फ़ौजी दोस्त तथा फ़ौजी’, पारमिता षड़ंगी की ‘संघर्ष’, डॉ. मंजुला पांडेय की ‘इंसानियत की मिसाल तथा अदम्य साहस’, देवी नागरानी की ‘अख़बार वाला मूर्ति’, नुरुस्सबा शायान की ‘मैं सिपाही बनूँगा’, सेवा सदन प्रसाद की ‘वफ़ादारी’ तथा ‘एक और शहीद’, रतनलाल मेनारिया की ‘माँ’, मैत्रेयी कमीला की ‘ऐसे भी होता है’, लता तेजेश्वर की ‘बॉर्डर तथा मेरे पापा’, डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी की ‘बैक टू बटालियन’, भगवती सक्सेना गौड़ की ‘फ़ौजी की पत्नी’, वंदना पुणतांबेकर की ‘दिव्यांगता’, ओमप्रकाश क्षत्रिय की ‘दूसरी शादी’, डॉ. शैलजा ऐन भट्टड़ की ‘बच्चे किसके’, डॉ. शील कौशिक की ‘ऐसे लोग’, सुशीला जोशी की ‘साहस के सींग नहीं होते’, डॉ. सुषमा सिंह की ‘स्वागत तथा अधूरा सपना’, और डॉ. मंजु गुप्ता की ‘पायलट मोना की सूझ बुझ’ लघुकथाएँ संकलित की गईं। इन लघुकथाओं से गुज़रते हुए यह अहसास ख़ुद-ब-ख़ुद जगता जाता है कि आज की विषम स्थिति में जब मानव हर प्रकार खंडित हुआ जाता है, जब विश्व के कई देशों के बीच युद्ध की विभीषिका जारी है, जब मानवीय और सामाजिक मूल्य की धज्जियाँ उड़ रही है, जब चारों ओर अनैतिक और स्वार्थों का घमासान मचा है, जब हमारी संवेदनाएँ  को बड़े सुनियोजित तरीक़े से रौंदा जा रहा है, ऐसे विकट समय में उक्त रचनाकारों की लेखनी से जो रचनाएँ सामने आई हैं, हम आश्वस्त हो सकते हैं कि अभी भी सारे विरोधी समय के बावजूद ज़िन्दा और बची हुई है मनुष्यता के सापेक्ष हमारी संवेदनाएँ बची हुई हैं। हमारे मानवीय मूल्य, नैतिकताओं का राग, युद्धों के बीच हमारी चिंता और चेतना, ज़िन्दा हैं अभी भी हमारी अपनी अपनेपन की सौग़ातें। ‘मैं भी सैनिक’ पुस्तक में उपर्युक्त रचनाकारों ने बड़ी ही शिद्दत से इन सारे मूल्यों को बहाल करने वाली रचनाओं से हमें उपकृत किया है। इन मायनों में यह लघुकथा संग्रह कामयाब हुई है। इन सबों को न सिर्फ़ पढ़ा जाना लाज़िमी है बल्कि यह पुस्तक हर जागरूक पाठकों के मध्य विचारशील आयामों की खिड़कियाँ खोलने की शक्ति देता है। 

इस पुस्तक को पढ़ते हुए यह लगता है कि इस पुस्तक कुछ और उच्च स्तरीय रचनाएँ आ सकती थीं, पृष्ठ संख्या को बढ़ाया जा सकता था। इस पुस्तक में एक नया प्रयोग किया गया कि इसमें कुछ लेखकों की कृतियों को विज्ञापन के रूप में परोसा गया है, जो संग्रह हेतु अखरता है। अब यह पाठकों पर निर्भर करता है कि किसी साहित्यिक पुस्तक में विज्ञापन का होना कितना प्रासंगिक है। पुस्तक की साज-सज्जा और कलेवर ठीक-ठाक है। साहित्य जगत में इस पुस्तक का स्वागत है। 

-मोतीलाल दास
मोबाइल-7978537176

1 टिप्पणियाँ

  • 1 Dec, 2023 10:32 AM

    अच्छी समीक्षा

कृपया टिप्पणी दें