सिंचन
मोतीलाल दासतुम
गिरते रहे
मेरे भीतर
बारिश के बूँदें बनकर
मैं
भीगती रही
उल्लास की संवेदना से
और हरी हो गई
ठीक धरती की तरह।
तुम
गिरते रहे
मेरे भीतर
बारिश के बूँदें बनकर
मैं
भीगती रही
उल्लास की संवेदना से
और हरी हो गई
ठीक धरती की तरह।