मेरा होना
मोतीलाल दासरहता हूँ मैं
जब अपने कॉलेज में
ठीक उसी वक़्त
मैं शामिल रहता हूँ
पिता की चिंता में
माँ की ममता में
बहन के अपनेपन में
और भाई के खिलंदड़पन में
मैं रहता हूँ
जब किसी सड़क में
ठीक उसी वक़्त
मेरी सोच में घिर आता है
घर का आँगन
परिवार की आशाएँ
और मोहल्ले की दुआएँ
मैं जब होता हूँ
किसी गोष्ठी में
ठीक उसी वक़्त
मेरे ज़ेहन में कौंध उठता है
गाँव की पीड़ाएँ
भूखों की रोटियाँ
और जीवन की असंगतियाँ
कहता हूँ जब
मैं किसी से कुछ बातें
ठीक उसी वक़्त
मेरी आँखें लाल हो उठती हैं
घर जाने की सारी पगडंडियाँ
गुम होती चली जाती है
और पता नहीं कैसे
मेरी बातों में
ज़हर बुझे तीर चलने लगते हैं
होता हूँ जब
मैं अपने भीतर
ठीक उसी वक़्त
मैं होता हूँ
प्रवाह के गहरे तल में
बज रहा होता है संगीत
और प्रकृति हँस रही होती है
आख़िर मैं
क्यों रहता हूँ
इतना इतना विभक्त
और उतनी उतनी सोचों में
अच्छा होता
कि मैं मैं रहता
या फिर नहीं रहता।