वसंत

गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मनमोहक वसंत आया है 
पुष्प खिले हैं उपवन-उपवन। 
 
ऋतुओं का राजा कहलाता 
नई उमंगें देकर जाता 
 
वसंत पंचमी की शुभ तिथि को 
माँ वाणी का करते पूजन। 
 
नवल प्रकृति की सुषमा न्यारी 
महक रही है क्यारी-क्यारी
 
बीत गई है ऋतु पतझड़ की 
हवा बजाती पायल छन-छन। 
 
अमराई में कोयल बोले 
कानों में जैसे मधु घोले 
 
रंगबिरंगी उड़ें तितलियाँ 
चंचल भौंरे करते गायन। 
 
हम भी कलियों-सा मुस्काएँ
सदा सुहाने स्वप्न सजाएँ 
 
जाग उठे हैं भाव सुकोमल 
मुदित हुआ आशामय जीवन। 

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