हमारे दुख
गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’
आपको क्या पता, हमारे दुख।
सच न पाते बता, हमारे दुख।
पंथ में आ रहे कई रोड़े
पढ़ा दिए धता, हमारे दुख।
लोग हँसते हैं, मुस्कुराते हैं
कौन है नापता, हमारे दुख।
ग्रंथ देते हैं शाश्वत चिंतन
नहीं पाते सता, हमारे दुख।
प्रेम के बोल दो सुने ज्यों ही
हो गए लापता, हमारे दुख।
मित्र ऐसा नहीं मिला अबतक
बाँटना चाहता, हमारे दुख।
सभी मन को कुरेदने वाले
कोई न ढाँपता, हमारे दुख।