जयति महात्मा बुद्ध 

15-04-2024

जयति महात्मा बुद्ध 

गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

देवि महामाया सुवन, नृप शुद्धोधन तात। 
जन्मा शिशु सिद्धार्थ था, लेकर नवल प्रभात। 
 
जन्मे गौतम गोत्र में, पाया गौतम नाम। 
मौसी ने पाला उसे, दे ममत्व अभिराम। 
 
बचपन से सिद्धार्थ-मन, था करुणा का स्रोत। 
गले लगाया दीन को, प्रेम से ओतप्रोत। 
 
मन में बाद विवाह के, जाग उठा वैराग्य। 
त्याग दिया परिवार को, बनी साधना भाग्य। 
 
जरा, रोग और मृत्यु से, उपजा मन में ज्ञान। 
सत्य जानने के लिए, किया तपस्या-ध्यान। 
 
बैषाखी पूर्णिमा को, गौतम थे ध्यानस्थ। 
‘बुद्ध’ बने सद्ज्ञान पा, बोधिवृक्ष निकटस्थ। 
 
ज़ोर अहिंसा पर दिया, बलि का किया विरोध। 
समझाया दुःख-मुक्ति हित, अष्टांगिक-पथ शोध। 
 
स्वयं तथागत रूप में, त्यागा माया-भोग। 
मानवीय सद्कर्म हैं, ध्यान, तपस्या, योग। 
 
पुनर्जन्म का चक्र है, मायावी संसार। 
साधन पीड़ा-मुक्ति का, बोधिसत्व आधार। 
 
बुद्ध, धम्म और संघ हैं, बौद्ध धर्म के रत्न। 
शिक्षाओं को ग्रहण कर, करें पूर्ति हित यत्न। 
 
जयति महात्मा बुद्ध की, गूँजे देश-विदेश। 
मानव के कल्याण हित, मूल्यवान उपदेश। 

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