उर्वशी और पुरुरवा की प्रेमकथा
महेन्द्र तिवारी
दृश्य- 1
(एक घना वन। चंद्रमा की रोशनी पेड़ों की पत्तियों से छनकर आ रही है। पुरुरवा शिकार पर निकले हैं। अचानक, उन्हें एक स्त्री दिखाई देती है, जो भय से इधर-उधर देख रही है।)
पुरुरवा:
(आश्चर्य से) तुम . . . कौन हो? तुम्हारी आँखों में यह भय क्यों?
उर्वशी:
(धीमे स्वर में) मैं . . . उर्वशी हूँ, स्वर्गलोक की अप्सरा। असुरों के आक्रमण में भटकते-भटकते यहाँ आ गई।
पुरुरवा:
स्वर्ग की अप्सरा . . . धरती पर? (क्षण भर रुककर) मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सुरक्षित स्थान दूँगा।
दृश्य- 2
(महल में, कुछ दिनों बाद। दोनों के बीच आत्मीयता पनप चुकी है।)
पुरुरवा:
उर्वशी, तुम्हारे बिना यह महल सूना लगता है। क्या तुम यहीं रहोगी?
उर्वशी:
(हल्की मुस्कान के साथ) रहूँगी, पर एक शर्त है।
पुरुरवा:
कहो, मैं हर शर्त मान लूँगा।
उर्वशी:
पहली—तुम कभी नग्न अवस्था में मेरे सामने नहीं आओगे, सिवाय हमारे निजी क्षणों के। दूसरी—मेरे दो प्रिय मेमनों की रक्षा तुम्हें करनी होगी।
पुरुरवा:
(हँसते हुए) इतनी छोटी-सी बात? मैं वचन देता हूँ।
दृश्य- 3
(ऋतुएँ बीतती हैं। प्रेम गहराता है। लेकिन एक रात . . . )
(अंधेरा। आकाश में बादल गरज रहे हैं। अचानक मेमनों की बेचैन आवाज सुनाई देती है।)
उर्वशी:
(चौंककर) पुरुरवा! मेरे मेमने! कोई उन्हें ले जा रहा है!
पुरुरवा:
(तलवार उठाते हुए) चिंता मत करो, मैं अभी लाता हूँ।
(पुरुरवा बिना वस्त्र पहने बाहर दौड़ते हैं। गंधर्वों ने चाल चली है। अचानक बिजली चमकती है। रोशनी में उर्वशी की नज़र पुरुरवा पर पड़ती है।)
उर्वशी:
(हृदय विदीर्ण होते हुए) पुरुरवा . . . हमारी शर्त टूट गई।
पुरुरवा:
(घबराकर) नहीं . . . नहीं, उर्वशी, यह संयोग था!
उर्वशी:
(आँखों में आँसू) नियति को संयोग ही चाहिए था। अब मुझे लौटना होगा . . .
(क्षण भर में वह धुंध-सी विलीन हो जाती है।)
दृश्य- 4
(कुछ समय बाद। पुरुरवा वन-वन भटक रहे हैं।)
पुरुरवा:
(आकाश की ओर) हे देवताओं! मेरी प्रेयसी को लौटा दो। मैं उसके बिना अधूरा हूँ।
(एक दिन, एक शांत सरोवर के किनारे। उर्वशी कमल तोड़ रही है।)
पुरुरवा:
(भावुक स्वर में) उर्वशी . . . !
उर्वशी:
(मुस्कुराकर) तुमने मुझे ढूँढ लिया . . .
पुरुरवा:
मैंने एक-एक पेड़, एक-एक नदी से तुम्हारा नाम पूछा। क्यों गई थीं?
उर्वशी:
मैं अमर लोक की हूँ, पुरुरवा। हम केवल क्षणिक साथ के लिए बने थे।
पुरुरवा:
नहीं, मैं देवताओं से लड़ लूँगा, पर तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।
उर्वशी:
(धीरे से) गंधर्व तुम्हें एक अवसर देंगे, लेकिन हमेशा के लिए नहीं।
दृश्य- 5
(गंधर्वों की कृपा से उर्वशी कुछ समय के लिए धरती पर लौट आती है। दोनों का मिलन होता है। उनके पुत्र आयु का जन्म होता है।)
पुरुरवा:
देखो, यह हमारा अंश है—हमेशा जीवित रहेगा
उर्वशी:
हाँ, लेकिन मैं फिर भी अमर लोक की हूँ।
(एक दिन, गंधर्वों का संदेश आता है।)
गंधर्व-दूत:
उर्वशी, तुम्हारा समय पूरा हुआ। लौट चलो।
पुरुरवा:
(उर्वशी का हाथ पकड़ते हुए) नहीं! तुम मुझे छोड़कर नहीं जाओगी।
उर्वशी:
(आँखों में आँसू, पर होठों पर मुस्कान) पुरुरवा, प्रेम को बाँधने से वह मर जाता है। हमारा प्रेम अब स्मृति में अमर रहेगा।
(वह धीरे-धीरे विलीन हो जाती है। पुरुरवा अकेले खड़े हैं, पर उनकी आँखों में संतोष है कि उन्होंने सच्चा प्रेम जिया।)