तालियाँ एक हाथ से ही बजती हैं
महेन्द्र तिवारी
“एक हाथ से ताली नहीं बजती।” ये तो पुरानी कहावत है, लेकिन आजकल सोशल मीडिया की दुनिया में इसे उल्टा कर रखा गया है, “एक हाथ से ही ताली बजती है!” तो आइए इस नए संस्करण को समझते हैं।
सबसे पहले, कहावत का असली मतलब जान लें। यह कहती है कि जब झगड़ा होता है, तो असल ज़िम्मेदारी दोनों पक्षों की होती है—क्योंकि “झगड़ा एकतरफ़ा नहीं होता” । दूसरे शब्दों में, दोनों हाथ मिलते हैं तभी ताली बजती है। अब कल्पना कीजिए: अगर एक हाथ से ही तालियाँ गूँजने लगे, तो दुनिया में क्या-क्या होगा?
सोशल मीडिया का ‘एक हाथ वाली ताली’ का ट्रेंड
अब हर कोई बस १० सेकंड वाली कहानी साझा करता है, और दर्शक अपने एक हाथ से तालियाँ बजाते हैं: “धांसू!”, “अच्छा लिखा!”, “वाह!”—और कोई प्रतिक्रिया? ताला टूटा। असल मायनों में कोई समर्थन नहीं; यह सिर्फ़ दिखावा है। मज़ेदार तो यह हुआ कि ताली देने वाले की टाँग भी नहीं हिलती।
ऑफ़िस का ‘ऑनलाइन एप्रिसिएशन’
ईमेल आता है—“आपका काम शानदार था!”, “ग्राहक ख़ुश हैं!” पर जहाँ असल इनाम दिया जाना चाहिए, वहाँ सिर्फ़ इमोजी आती है थंब्स-अप या ताली की। एच आर कहा करता है: टीम स्पिरिट चाहिए! फिर पैकेज? अगले साल देखेंगे। एक‑हाथ की ताली यहाँ सबसे ज़्यादा बजती है: दिखावटी तारीफ़, असली मेहनत की कोई गूँज नहीं।
परिवार में सेलिब्रिटी बाज़ार
बच्चे की स्कूल रिपोर्ट पर पापा तुरंत फोन से फोटो डालते हैं: “देखो मेरा बच्चा कितना बुद्धिमान!” रिएक्शंस मिलते हैं—मगर शिक्षक जब सुधार बताते हैं, तो कँपकँपाती माँ कहती है, “ज़रा ठीक से देखो, बस थोड़ा सुधार” और फिर बजती एक हाथ की ताली, पूरा परिवार चुप। असली संवाद नहीं, सिर्फ़ वर्चुअल तालियाँ।
राजनीति में ‘एक हाथ की तालियाँ’
राजनीतिज्ञ मंच पर भाषण देते हैं, विपक्ष प्रश्न पूछता है—फिर तस्वीरें आती हैं “धैर्य से सुनिए!” और तालियाँ बजनी शुरू होती हैं। लेकिन जब विपक्ष तथ्य प्रस्तुत करता है, तो जवाब में चुप्पी। फिर जनता कहे: “देखो, एक हाथ से ताली बज रही है, जवाब नहीं।”