शतरंज की रानी—दिव्या देशमुख

15-08-2025

शतरंज की रानी—दिव्या देशमुख

महेन्द्र तिवारी (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

घोड़े की टेढ़ी चाल में सीधी सोच समाई, 
हर सिपाही में उसकी योजना गहराई। 
न राजा डरा, न वज़ीर कुछ कर पाया, 
हर जीत में नारी शक्ति की ध्वनि सुनाई। 
 
शब्द न बोले कोई उसने मंच या सभा में, 
पर ख़ामोश आँखों में थी गर्जन हर दिशा में। 
शतरंज की बिसात पर लिखा गया इतिहास, 
हर चाल में था भारत का आत्मविश्वासस। 
 
घड़ी की टिक-टिक में सोच की चिंगारी थी, 
हर मोहरे में एक नई रणनीति की तैयारी थी। 
जिसने शतरंज को केवल एक खेल समझा, 
वो जान न सका बेटी की जंग कबसे जारी थी। 
 
शतरंज की गाथा अब कुछ और कहती है, 
जहाँ अब रानी ही सबसे तेज़ चलती है। 
दिव्या ने दिखाया, शक्ति सोच में बसती है, 
अब हर बिसात पर नारी ही विजयी होती है। 

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