तुम्हारी बात

06-12-2014

तुम्हारी बात

रेखा राजवंशी


शाम चुपचाप ढलती जाती है
तुम्हारी बात चलती जाती है
 
आँख को न था हादसों पे यक़ीं
न वो हँसती, न रोने पाती है
 
देख के चंद सितारों का रुख़
कश्ती तूफ़ाँ में बढ़ती जाती है
 
लेके हाथों में वो सूखे गज़रे
ज़िंदगी ग़ज़ल गुनगुनाती है
 
तुमसे मिलने का, बिछड़ने का सबब, 
दुनिया पूछे तो मुस्कुराती है
 
वो जो आएँ, तो मेरा चाँद आए, 
ईद आती है, चली जाती है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें