बुलबुला
रेखा राजवंशी
शोर करता रहा महीने भर
बुलबुला सा था आज टूट गया
कल जो फूला रहा गुब्बारे सा
एक तिनके से आज फूट गया
पहले ऊँगली उठाते थे हम पे
अब ज़माना उन्हीं से रूठ गया
बोलकर झूठ तिजोरी भरते
कोई आकर उन्हें भी लूट गया
क्यों करें आज उसकी रुसवाई
अब जो पीछे सफ़र में छूट गया