बुलबुला

19-12-2014

बुलबुला

रेखा राजवंशी

 

शोर करता रहा महीने भर
बुलबुला सा था आज टूट गया
 
कल जो फूला रहा गुब्बारे सा
एक तिनके से आज फूट गया
 
पहले ऊँगली उठाते थे हम पे
अब ज़माना उन्हीं से रूठ गया
 
बोलकर झूठ तिजोरी भरते
कोई आकर उन्हें भी लूट गया
 
क्यों करें आज उसकी रुसवाई
अब जो पीछे सफ़र में छूट गया

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें