एक साल बीत गया
रेखा राजवंशी
जीवन की नदिया में
जैसे कुछ रीत गया
एक साल बीत गया
भावों की गठरी में
अनुभव के पल लेकर
कुछ मीठे, कुछ खट्टे
कुछ कड़वे फल देकर
वक़्त इस लड़ाई में
देखो फिर जीत गया
एक साल बीत गया
आँखों की कोरों से
बहते गंगाजल सा
दुनिया भर में फिरते
आवारा बादल सा
बरसा जब आँगन में
तन-मन सब भीग गया
एक साल बीत गया
यादों के गुलमोहर
खिलते और मुरझाते
द्वारे सूखे तोमर
फिर मन को समझाते
लौट आएगा वापिस
वो मन का मीत गया
एक साल बीत गया