तुम्हारे क़रीब होकर . . .
योगेन्द्र पांडेय
तुम्हारे क़रीब होकर मैंने यह जाना
कि एक स्त्री को समझने के लिए
पुरुष को समर्पित होना चाहिए
दुख सुख में साथ होना चाहिए
स्त्री का मन बहुत ही नाज़ुक होता है
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह
स्त्री जितने समर्पण के साथ प्रेम करती है
उतनी ही उग्रता के साथ नफ़रत भी
कभी किसी स्त्री का मन ना दुखाना
स्त्री सृष्टि की आवश्यकता है
स्त्री प्रेम की प्रथम अनुभूति है
स्त्री सर्वस्व त्याग की परिभाषा है
स्त्री का होना संसार का होना है
स्त्री कभी अपवित्र नहीं होती
प्रेम और त्याग का पर्याय बनकर
एक स्त्री रचती है एक सुंदर संसार॥