आया बसंत
योगेन्द्र पांडेय
अरुणोदय की सुंदर आभा
नई चेतना लेकर आई
वसुधा के वक्षस्थल पर
प्रकृति ने अलकें बिखराईं
युगों युगों से व्याकुल मन की
हुआ क्षुधा का अंत
आया बसंत . . .
ऋतुराज के स्वागत में
फूलों ने शीश झुकाए
नवल कंठ से जीवन के
गीत पपीहा गाए
कवि के मन में फूट रहा है
आशाओं का छंद
आया बसंत . . .
दुलहन सी है सजी धरा
महक उठा तन मन
सजग विहग के कलरव से
पुलकित हैं जन जन
धर्म ध्वजा को लहराए
साधु संत महंत
आया बसंत . . .