चलो कि हम एक दूसरे को भुला देते हैं
योगेन्द्र पांडेय
चलो कि हम एक दूसरे को भुला देते हैं
न तुम मुझे याद आना
न मैं तुम्हें याद आऊँ
फिर से हम अजनबी हो जाते हैं
जैसे कि अपनी कोई जान पहचान ही ना हो।
चलो की हम भुला देते हैं
वो सारे क़समें वादे जो कभी खाए थे हम दोनों
ज़िन्दगी भर साथ साथ रहने के लिए
तुम अपनी राह अलग बना लो
मैं अपनी राह अलग बना लूँ।
आख़िर कब तक ढोएँगे हम
बेनाम से रिश्ते का बोझ
मुझको भूल जाओ तो
तुमको भी सुकून मिलेगा
ना मैं याद आऊँगा तुम्हें ना तुम रोओगी
अकेले अकेले छत की सीढ़ियों पर बैठी
चलो कि हम एक दूसरे को भुला देते हैं॥