प्रेमग्रंथ . . . 

15-05-2025

प्रेमग्रंथ . . . 

योगेन्द्र पांडेय (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

तुम पुष्प हो मेरे उपवन की 
मुस्कान मधुर हो चितवन की 
इस जग में ज़िन्दा रहने का 
एक तुम्हीं अमर निशानी हो, 
मेरा जीवन है प्रेमग्रंथ 
तुम मेरी प्रेम कहानी हो॥1॥
 
इस जीवन के सूनेपन में 
शांत चित उद्वेलित मन में 
महक रही मेरे गीतों में 
तुम रात की रानी हो, 
मेरा जीवन है प्रेमग्रंथ 
तुम मेरी प्रेम कहानी हो॥2॥
 
तुम हो पावन गंगा जल 
तुम पंखुरी सी हो कोमल 
मोती बन कर चमक रही 
मेरी आँखों का पानी हो, 
मेरा जीवन है प्रेमग्रंथ 
तुम मेरी प्रेम कहानी हो॥3॥

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