स्वर्ण - चिरैया भारतवर्ष
अनिल मिश्रा ’प्रहरी’भारत की मिट्टी है सोना
शस्य भरा है कोना - कोना,
आशाओं की किरण दृगों में
कण-कण पर छाया उत्कर्ष।
स्वर्ण - चिरैया भारतवर्ष।
विभव, रत्न से सज्जित काया
मोती, माणिक इसने पाया,
दूर तिमिर, हर दिशा विभासित
मुख - मंडल पर तिरता हर्ष।
स्वर्ण - चिरैया भारतवर्ष।
सकल विश्व की एकल वाणी
भारत - भूमि जगत् -कल्याणी,
ज्ञान और गुर से आभूषित
दूर हृदय से सदा अमर्ष।
स्वर्ण - चिरैया भारतवर्ष।