सब्र की मत छोड़ना पतवार
अनिल मिश्रा ’प्रहरी’
जीत हो फिर भी न रुकना
हार में थककर न झुकना,
बढ़ सदा चाहे गिरो सौ-बार
सब्र की मत छोड़ना पतवार।
राह बिखरे शूल तो क्या
स्वप्न सारे धूल तो क्या,
हौसले से अग्निपथ कर पार
सब्र की मत छोड़ना पतवार।
वक़्त कितना भी कठिन हो
भाग्य की रेखा मलिन हो,
कर रगों में शौर्य-बल संचार
सब्र की मत छोड़ना पतवार।