प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ

01-06-2024

प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ

अनिल मिश्रा ’प्रहरी’ (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

पग में बोले छम-छम पायल, मुक्त कंठ मृदु-गीत
ओढ़ प्रणय की झिलमिल चूनर, प्रियतम के संग प्रीत, 
प्रेमकुंज की चुन नव-कलियाँ निज-कर पंथ सजाऊँ। 
प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ। 
 
कंचन-किंकिणी शोभे कटि पर, गले सुसज्जित माला
कनक-मुद्रिका, कुंडल, टीका, बेकल नथनी, बाला, 
पुलकित मन मैं खड़ी प्रणयिनी नाचूँ या इतराऊँ। 
प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ। 
 
गजरा शोभे जूही, चंपा, विहँसे मधुमय बेला
ग़ौर, सुघर, मोहक कपोल पर कुंतल-नर्तन-खेला, 
मधुर-मिलन के गीत मीत मैं मृदुल कंठ से गाऊँ। 
प्रिय मैं अंजन नैन लगाऊँ। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें