शेर–सा दहाड़ तू
अनिल मिश्रा ’प्रहरी’
बल असीम पास रख
लहू, उत्तप्त साँस रख,
प्रचंड तेज, ताप से झुका खड़ा पहाड़ तू
शेर–सा दहाड़ तू।
हो लौह-पाश तोड़ दे
तू उग्र धार मोड़ दे,
अखण्ड ज्योति के लिए तिमिर-चरण उखाड़ तू
शेर–सा दहाड़ तू।
चुनौतियाँ हैं कम नहीं
पर आँधियों में दम नहीं,
अनर्थ बात सोचकर गला न वीर हाड़ तू
शेर–सा दहाड़ तू।