मौत की औक़ात क्या!
अनिल मिश्रा ’प्रहरी’ज़िन्दगी की आस रख
हर क़दम विश्वास रख,
टूटती क्यों साँस की लय
क्यों हृदय में मृत्यु का भय?
तम करे आघात क्या?
मौत की औक़ात क्या!
ज़िन्दगी एक ज्योति - चंचल
ज़िन्दगी है तू अगर चल,
ज़िन्दगी उज्ज्वल - सवेरा
मौत बस एक तम घनेरा।
तिमिर देगा मात क्या?
मौत की औक़ात क्या!
मौत आये ग़म नहीं है
जी लिया जो कम नहीं है,
मौत के संग चल पड़ूँगा
खुद चिता पर जल पड़ूँगा।
वो मुझे दे घात क्या?
मौत की औक़ात क्या!